बिहार की सियासत एक बार फिर गरम होती दिख रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सभी दल अपनी-अपनी रणनीति को लेकर सक्रिय हो चुके हैं। इसी क्रम में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति (RLM) प्रमुख आदरणीय उपेंद्र कुशवाहा को लेकर एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया गया है। पटना के जाने-माने त्वचा एवं सौंदर्य विशेषज्ञ डॉ. एस. मधुप ने कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा जी को इस बार टिकट वितरण में विशेष सतर्कता और समझदारी दिखानी होगी, ताकि पार्टी का अस्तित्व और साख दोनों बरकरार रह सकें।
डॉ. मधुप ने कहा कि “मैं आपको अग्रिम जीत की हार्दिक शुभकामनाएं और शुभ शगुन देता हूं, लेकिन यह भी जरूरी है कि टिकट वितरण में जल्दबाजी न की जाए। इस बार के हालात पहले जैसे नहीं हैं। छह सीटों पर चुनाव लड़ना अपने आप में बड़ी चुनौती है। खासकर जब इनमें से एक सीट पर आरजेडी (RJD) के दिग्गज नेता आलोक मेहता से सीधी टक्कर हो, तो मुकाबला और भी कठिन हो जाता है।”
उन्होंने कहा कि अगर इस बार पार्टी का स्ट्राइक रेट (जीत की प्रतिशतता) कम रहा, तो चुनाव के बाद कई नेता और कार्यकर्ता दूसरे दलों की ओर रुख कर सकते हैं, जैसा कि पहले भी देखा गया था जब कुछ सांसद (MP) पार्टी छोड़कर चले गए थे। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे इस बार “सेफ सीट” की रणनीति अपनाएं, ताकि चुनाव परिणाम चाहे जैसा भी हो, पार्टी की पकड़ और पहचान बनी रहे।
डॉ. मधुप का कहना है कि, “एक सुरक्षित सीट परिवार के किसी सदस्य या विश्वसनीय चेहरे को देने की सोच रखी जा सकती है, लेकिन इस समय परिवारवाद से बचना भी उतना ही जरूरी है। जनता अब पारदर्शिता चाहती है और कुशवाहा जी को एक बार फिर यह साबित करना होगा कि वे व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर संगठन के हित में निर्णय ले सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि पार्टी का भविष्य सिर्फ चुनाव जीतने पर नहीं, बल्कि संगठन के अंदर एकजुटता बनाए रखने पर भी निर्भर करेगा। टिकट ऐसे लोगों को मिलना चाहिए जिन्होंने हर परिस्थिति में पार्टी का साथ दिया है — चाहे वक्त कठिन रहा हो या विपक्ष ने दबाव बनाया हो। डॉ. मधुप के अनुसार, “पार्टी को अब उन जमीनी कार्यकर्ताओं पर भरोसा जताना चाहिए जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के जनसेवा और संगठन विस्तार में योगदान दिया है।”
डॉ. मधुप ने यह भी कहा कि RLM प्रमुख को चाहिए कि पहले यह स्पष्ट करें कि पार्टी किन सीटों पर चुनाव लड़ेगी, और उन क्षेत्रों में विपक्ष के उम्मीदवार कौन होंगे। उसी आधार पर रणनीति तैयार की जानी चाहिए। “बिना विपक्ष के उम्मीदवारों की ताकत जाने रणनीति बनाना, बिना नक्शे के युद्ध लड़ने जैसा है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस बार की लड़ाई सिर्फ चुनावी नहीं है, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है — कुशवाहा और उनकी पार्टी दोनों के लिए। उन्होंने कहा कि, “इस बार कुशवाहा जी को न केवल अपनी छवि बचानी है, बल्कि पूरे कुशवाहा समाज का सम्मान भी दांव पर है। जनता की उम्मीदें अब भी उनसे जुड़ी हैं कि वे बिहार की राजनीति में एक स्वच्छ, शिक्षित और विचारशील चेहरा बनकर उभरें।”
डॉ. मधुप ने उपेंद्र कुशवाहा को “विवेक और अनुभव के साथ आगे बढ़ने” की सलाह दी। उनका कहना था कि यह वक्त भावनाओं से नहीं बल्कि तर्क और ठोस संगठनात्मक फैसलों से चलने का है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पार्टी सही दिशा में, सही उम्मीदवारों के साथ उतरी तो निश्चित ही जीत की संभावनाएं मजबूत होंगी।
अंत में उन्होंने कहा —
“नेतृत्व का अर्थ सिर्फ चुनाव जीतना नहीं होता, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं और समाज का भरोसा बनाए रखना होता है। उपेंद्र कुशवाहा जी के पास यह मौका है कि वे अपने संगठन को एक नई पहचान दें, परिवारवाद से ऊपर उठकर ईमानदार कार्यकर्ताओं को आगे लाएं और जनता के बीच यह संदेश दें कि RLM किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि विचारधारा की

