एक राष्ट्र, एक ब्रांड – डॉक्टर अब सिर्फ सेवक नहीं, संस्थान के सह-स्वामी बनेंगे
पटना/मधुप न्यूज 24
बिहार की राजधानी पटना एक ऐतिहासिक चिकित्सा क्रांति की गवाह बनने जा रही है, जहां ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव डॉक्टर एसोसिएशन द्वारा आयोजित सेवा सह स्वामित्व सृजन सम्मेलन का आयोजन प्रस्तावित है। इस सम्मेलन का उद्देश्य देश में स्वास्थ्य सेवा को एक नए मॉडल — सेवा और स्वामित्व के समन्वय — से जोड़ना है, जिससे डॉक्टरों को केवल सेवा प्रदाता नहीं, बल्कि संस्थान के सह-स्वामी के रूप में जिम्मेदारी और अधिकार दोनों मिलें। इस पहल के तहत देशभर में एक एकीकृत मेडिकल ब्रांड की शुरुआत की जाएगी, जो चिकित्सा सेवा, शिक्षा, रोजगार और रिसर्च के क्षेत्र में एक नई इबारत लिखेगा।
इस ऐतिहासिक सम्मेलन में मंच की शोभा बढ़ाने के लिए बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री माननीय श्री सम्राट चौधरी, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री एवं वर्तमान राज्यसभा सांसद माननीय उपेंद्र कुशवाहा, बिहार सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. सुनील कुमार, और झारखंड के पांकी क्षेत्र के विधायक व उद्योगपति डॉ. कुशवाहा शशिभूषण मेहता श्री कुशवाहा शिवचरन मेहता,जैसे प्रभावशाली नेताओं की उपस्थिति सुनिश्चित की गई है। यह सभी अतिथि चिकित्सा क्षेत्र में इस अभिनव सोच का समर्थन कर रहे हैं और इसे बिहार और झारखंड से देशभर में विस्तार देने की योजना में सहभागी बनने जा रहे हैं।
सम्मेलन के दौरान माननीय सम्राट चौधरी द्वारा इस राष्ट्रीय ब्रांड की विधिवत शुरुआत की जाएगी, जिसकी पहली ईंट झारखंड और बिहार में रखी जाएगी। इसके बाद इसे अन्य राज्यों में चरणबद्ध ढंग से विस्तारित किया जाएगा। खास बात यह है कि इस ब्रांड के अंतर्गत न केवल अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज विकसित किए जाएंगे, बल्कि चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान, ग्रामीण हेल्थ नेटवर्क और आधुनिक तकनीक के मेल से एक सर्वसमावेशी मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा।
वहीं, डॉ. शशिभूषण मेहता सम्मेलन के दौरान झारखंड में एक विश्वस्तरीय मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल खोलने की औपचारिक घोषणा करेंगे, जो क्षेत्र के स्वास्थ्य मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उठाने का कार्य करेगा। इस हॉस्पिटल का संचालन और प्रबंधन भी सेवा-सह-स्वामित्व मॉडल के तहत होगा, जिसमें डॉक्टर, नर्स, टेक्निशियन सहित पूरा स्टाफ सहभागिता के साथ जिम्मेदार बनेगा।
इस आयोजन को लेकर देशभर के डॉक्टरों, नवोदित चिकित्सकों और स्वास्थ्य नीति से जुड़े बुद्धिजीवियों में विशेष उत्साह है। युवा डॉक्टरों में इसे लेकर उम्मीद की नई लहर है — वे इसे सिर्फ नौकरी का अवसर नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका के रूप में देख रहे हैं। उन्हें महसूस हो रहा है कि यह मॉडल उनके करियर को सुरक्षित, समर्पित और सम्मानजनक बनाएगा। साथ ही उन्हें व्यवसायिक दृष्टि से भी स्वतंत्र और सशक्त बनाएगा।
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव डॉक्टर एसोसिएशन का यह मानना है कि जब तक डॉक्टर को केवल सेवक के रूप में देखा जाता रहेगा और वह संस्था के निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा, तब तक चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्ता नहीं आ सकती। इसलिए यह सम्मेलन एक विचार, एक दर्शन और एक क्रांति का प्रारंभ है — जिसमें डॉक्टर और संस्था एक साथ चलेंगे, निर्णय लेंगे और समाज को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देंगे।
इस पूरे आयोजन को लेकर संगठन ने एक राष्ट्रव्यापी रणनीति तैयार की है। इस सम्मेलन के बाद देशभर में इसका विस्तार किया जाएगा, जिसमें हर राज्य में एक ही ब्रांड, एक जैसी सेवा, और एक जैसी जवाबदेही तय की जाएगी। इसके तहत गरीबों और ग्रामीण क्षेत्रों तक मुफ्त या सस्ती चिकित्सा सेवा पहुंचाने का भी रोडमैप तैयार किया गया है। साथ ही मेडिकल शिक्षा को भी सुलभ और व्यवसायिक स्वामित्व आधारित बनाया जाएगा।
संस्था यह भी मानती है कि मेडिकल क्षेत्र में आने वाले युवा अब सिर्फ एक सुरक्षित नौकरी नहीं चाहते, बल्कि वे नवाचार, नेतृत्व और स्वामित्व की भावना के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। यह मॉडल उन्हें वह मंच देगा, जहां वे स्टार्टअप सोच और जन सेवा भावना दोनों के बीच संतुलन बिठाकर एक स्मार्ट और संवेदनशील डॉक्टर बन सकेंगे।
इस आयोजन को ऐतिहासिक बनाने में संगठन का हर सदस्य तन-मन-धन से जुड़ा हुआ है। सभी मिलकर इसे भारत की चिकित्सा व्यवस्था में नवयुग की शुरुआत के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। संगठन को विश्वास है कि आने वाले वर्षों में जब देश की चिकित्सा सेवा पर चर्चा होगी, तब इस सम्मेलन को मील का पत्थर माना जाएगा।
साथ ही, सम्मेलन के बाद एक अखिल भारतीय समन्वय समिति (All India progressive, Medical Coordination Council.) के गठन की भी योजना है, जो इस मेडिकल ब्रांड को नीति, शिक्षा, तकनीक और सेवा के हर पहलू पर आगे बढ़ाएगी। इस परिषद में देश के प्रमुख चिकित्सा शिक्षाविद, डॉक्टर, उद्योगपति और नीति-निर्माता शामिल होंगे।
अंततः, यह आयोजन केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की नींव है। बिहार और झारखंड इसकी शुरुआत बनेंगे, लेकिन यह आंदोलन पूरे भारत में फैलेगा — जहां डॉक्टर सिर्फ सेवा नहीं देंगे, संस्था के निर्माता भी बनेंगे। यह वह सोच है जो भारत की चिकित्सा व्यवस्था को सिर्फ इलाज से नहीं, सम्मान, अधिकार और सहभागिता से जोड़ देगी।