हजारीबाग/गिरिडीह, 10 अगस्त 2025 — झारखंड के हजारीबाग और गिरिडीह जिलों में रविवार को कुशवाहा समाज ने भगवान कुश जयंती को अभूतपूर्व उत्साह और ऐतिहासिक गरिमा के साथ मनाया। यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि समाज की एकजुटता, जागरूकता और आत्मनिर्भरता का सशक्त प्रतीक बनकर सामने आया।

इस वर्ष का आयोजन प्रशांत कुमार सिन्हा (आईआरएस), कमिश्नर कस्टम, मुंबई के नेतृत्व में हुआ, जिसमें रामसूरत कुशवाहा (मुगलसराय) सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी, महिला प्रतिनिधि और युवा नेता शामिल हुए।

भगवान कुश का जीवन और प्रेरणा

भगवान कुश, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता सीता के पुत्र थे। उनके नाम पर “कुशवाहा” शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान कुश अपने पिता की तरह ही धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और पराक्रमी शासक थे। उन्होंने अयोध्या और आसपास के राज्यों में धर्म, शिक्षा और जनकल्याण की नीतियों को आगे बढ़ाया।

भगवान कुश का जीवन सत्य, सेवा और साहस का उदाहरण है। वे समाज में समानता और भाईचारे के प्रबल समर्थक थे। कुशवाहा समाज उन्हें अपना आदर्श मानता है और हर वर्ष उनकी जयंती को सामाजिक एकता और प्रगति का अवसर मानकर मनाता है।

मुख्य अतिथियों के प्रेरक संदेश

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और भगवान कुश की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। मंच से मुख्य अतिथियों ने समाज को एकजुट रहने और शिक्षा व आर्थिक मजबूती पर ध्यान केंद्रित करने की अपील की।

प्रशांत कुमार सिन्हा (आईआरएस) ने कहा—

“भगवान कुश का जीवन हमें यह सिखाता है कि धर्म और न्याय के रास्ते पर चलते हुए हम समाज में समृद्धि और समानता ला सकते हैं। शिक्षा और आत्मनिर्भरता ही हमारी असली ताकत है।”

रामसूरत कुशवाहा ने कहा—

> “समाज की प्रगति के लिए हमें भगवान कुश के आदर्शों पर चलना होगा और आने वाली पीढ़ी को उनके बारे में बताना होगा।”

महिला सशक्तिकरण पर जोर

बुद्धिजीवी वर्ग ने अपने भाषणों में कहा कि महिला सशक्तिकरण के बिना समाज का विकास संभव नहीं। उन्होंने बताया कि भगवान कुश के शासनकाल में महिलाओं को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान के अवसर दिए जाते थे, जो आज के समय में भी आदर्श हैं।

 

एक वक्ता ने कहा—

> “हमें बेटियों को पढ़ाना ही नहीं, बल्कि उन्हें नेतृत्व की भूमिका के लिए तैयार करना चाहिए।”

युवाओं का सम्मान और प्रेरणा

इस आयोजन का सबसे खास हिस्सा रहा मेट्रिक और इंटरमीडिएट उत्तीर्ण छात्रों का सम्मान। छात्रों ने भी समाज के इस सम्मान को प्रेरणा का स्रोत बताते हुए कहा कि वे उच्च शिक्षा और समाज सेवा में योगदान देंगे।

महापुरुषों से मिली प्रेरणा

वक्ताओं ने जगदेव प्रसाद, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, ज्योतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले, डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, बिरसा मुंडा और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जीवन से प्रेरणा लेने की अपील की।

एकता और आत्मनिर्भरता का संकल्प

कार्यक्रम के अंत में समाज ने यह संकल्प लिया—

> “हम शिक्षा को हथियार, एकता को ताकत और संघर्ष को रास्ता बनाकर समाज के हर वर्ग तक विकास और सम्मान पहुँचाएँगे।”

इसके साथ ही शैक्षिक सहायता कोष, महिला स्व-रोजगार योजना और युवा नेतृत्व विकास कार्यक्रम जैसी घोषणाएँ भी की गईं।

सांस्कृतिक रंग और धार्मिक आस्था

समारोह में भजन, लोकगीत और भगवान कुश की लीलाओं पर आधारित नाट्य मंचन हुआ। वातावरण में भक्ति और सामाजिक चेतना का अनोखा संगम देखने को मिला।

निष्कर्ष

हजारीबाग और गिरिडीह में आयोजित यह भव्य समारोह न केवल भगवान कुश के आदर्शों का स्मरण था, बल्कि समाज की एकजुटता और भविष्य की योजनाओं का उद्घोष भी। इस आयोजन ने साबित कर दिया कि कुशवाहा समाज शिक्षा, एकता और संघर्ष की ताकत से अपना सुनहरा भविष्य खुद लिखने को तैयार है।

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