पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर मेडिकल कॉलेज की द्वितीय वर्ष की छात्रा के साथ हुई वीभत्स और अमानवीय घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना केवल एक छात्रा पर हुए अत्याचार की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और शासन-व्यवस्था की असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा को उजागर करती है। इस क्रूरता पूर्ण अपराध की तीव्र निंदा करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार न्याय आयोग (National Human Rights Justice Commission) की ओडिशा और छत्तीसगढ़ इकाइयों ने एक संयुक्त बैठक कर राज्य सरकार से पीड़िता को त्वरित न्याय दिलाने की मांग की है। आयोग के ओडिशा के अध्यक्ष प्रभाकर महंती और छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डॉ. एस. मधुप ने कहा कि यह घटना न केवल बंगाल बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक है और इससे यह स्पष्ट होता है कि महिला सुरक्षा को लेकर हमारी संवेदनशीलता कितनी कमजोर हो गई है। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तुरंत संज्ञान लेकर दोषियों को गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की घृणित सोच रखने से पहले सौ बार सोचे। आयोग ने यह भी मांग की है कि सरकार पीड़िता और उसके परिवार से मिलकर उन्हें सुरक्षा, मानसिक सहयोग और पर्याप्त मुआवजा प्रदान करे, ताकि न्याय प्रक्रिया के दौरान वे भयमुक्त वातावरण में अपनी बात रख सकें। ओडिशा और छत्तीसगढ़ के पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि बार-बार घट रही इस तरह की घटनाओं ने समाज की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है और अब समय आ गया है कि केवल बयानबाज़ी नहीं बल्कि ठोस कानूनी सुधार किए जाएँ। बैठक में राज्य महासचिव ज्योतिमय पति, मुक्तिकांता महापात्रा, जिला अध्यक्ष जगदीश मिश्रा, बप्पी मिश्रा (कटक), दीपक साहू, सैमुएल प्रधान (अंगुल), काजोल नायक (प्रेसिडेंट), जॉन्नियुटन, शीबा पंडा, सुप्रिया दास, मधुमिता बेहरा, अंजलि महतो और सूरज कुशवाहा (छत्तीसगढ़) जैसे प्रमुख सदस्य मौजूद थे, जिन्होंने एक स्वर में कहा कि न्याय में देरी भी अन्याय के समान है। आयोग ने सरकार की प्रतिक्रिया को “निराशाजनक और गैर-जिम्मेदाराना” बताते हुए कहा कि जब किसी राज्य की सत्ता पीड़ित के साथ खड़ी होने के बजाय अपराधियों की रक्षा में लग जाती है, तो वह शासन नैतिक रूप से अपनी साख खो देता है। आयोग ने यह भी कहा कि कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा दिए गए बयान, जिनमें पीड़िता के आचरण और उपस्थिति पर सवाल उठाए गए, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं और यह सोच समाज को और अधिक अंधकार की ओर धकेल रही है। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ दरअसल अपराधियों को परोक्ष रूप से संरक्षण देती हैं और महिलाओं को यह संदेश देती हैं कि उनकी सुरक्षा कानून नहीं बल्कि उनके ‘व्यवहार’ पर निर्भर है — जो किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक स्थिति है। आयोग ने यह स्पष्ट किया कि न्याय किसी का विशेषाधिकार नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, और यदि सत्ता न्याय दिलाने में विफल रहती है तो वह अपनी नैतिक जिम्मेदारी से विमुख हो जाती है। इस दौरान आयोग ने पाँच प्रमुख माँगें रखीं — (1) निष्पक्ष, पारदर्शी और त्वरित जांच की जाए; (2) सभी आरोपितों को, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, तत्काल गिरफ्तार किया जाए; (3) पीड़िता और उसके परिवार को पूर्ण सुरक्षा, कानूनी सहायता और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जाए; (4) किसी भी राजनीतिक नेता या अधिकारी द्वारा पीड़िता के चरित्र पर टिप्पणी करने वालों पर कार्रवाई की जाए; और (5) महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक नया सशक्त कानून बनाया जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने में मदद मिल सके। आयोग ने कहा कि यह समय केवल संवेदना व्यक्त करने का नहीं बल्कि कार्रवाई का है, क्योंकि हर बार जब सत्ता कमजोरों की रक्षा में असफल होती है, वह अपने अस्तित्व की गरिमा खो देती है। बयान में यह भी कहा गया कि बंगाल के लोग सब कुछ देख रहे हैं और उन्हें भलीभांति पता है कि कौन न्याय के लिए बोल रहा है और कौन राजनीतिक हितों की आड़ में चुप है। आयोग ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सीधा अपील की है कि वे व्यक्तिगत रूप से पीड़िता के परिवार से मिलें और इस मामले को राज्य की प्राथमिकता में रखें। उन्होंने कहा कि सरकार यदि वास्तव में महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा की पक्षधर है, तो उसे इस मामले में उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। यह केवल बंगाल का नहीं बल्कि पूरे भारत की नारी गरिमा और सामाजिक चेतना का प्रश्न है। आयोग ने यह भी जोड़ा कि अब समय आ गया है जब हम सब मिलकर अपने समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और सुरक्षा की भावना को पुनर्जीवित करें। दुर्गापुर की यह घटना किसी भूली हुई फाइल में दबनी नहीं चाहिए, बल्कि यह वह क्षण होना चाहिए जब बंगाल अपनी अंतरात्मा को पुनः जागृत करे। राष्ट्रीय मानवाधिकार न्याय आयोग ने अपने संदेश में कहा — “सत्य के लिए, न्याय के लिए, मानवता के लिए,” और यह दोहराया कि जब राजनीति मानवता पर भारी पड़ने लगे, तब समाज को स्वयं उठकर न्याय की माँग करनी चाहिए। बंगाल की जनता अब चुप नहीं रहेगी, क्योंकि अब यह केवल एक छात्रा का नहीं, बल्कि हर बेटी, हर माँ और हर महिला के सम्मान का सवाल है। आयोग ने अंत में कहा कि अब वक्त आ गया है कि “न्याय में देरी, अन्याय के समान” के इस सत्य को हम सब याद रखें और यह सुनिश्चित करें कि दुर्गापुर की यह पीड़िता भारत में न्याय की नई परिभाषा लिखे — एक ऐसी परिभाषा जिसमें सत्ता नहीं, बल्कि मानवता सर्वोपरि हो।

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