दिनांक: 5 सितम्बर 2025
स्थान: सासाराम, बिहार
आज सासाराम के न्यू स्टेडियम फैजलगंज में शहीद जगदेव प्रसाद की स्मृति में आयोजित “राजनीतिक एकजुटता रैली” ने पूरे बिहार की राजनीति को नई दिशा देने का काम किया। यह आयोजन न केवल एक श्रद्धांजलि सभा था बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई का उद्घोष भी साबित हुआ।
उमड़ा जनसैलाब – भीड़ ने रचा इतिहास
रैली का नजारा अभूतपूर्व था। मुस्लिम समाज का पर्व होने के बावजूद सुबह से ही आस-पास के गाँवों और कस्बों से लोग झुंड बनाकर पहुँचने लगे। इतनी भारी भीड़ उमड़ी कि हेलिपैड से लेकर स्टेडियम तक पैरों रखने की जगह नहीं बची। लोग सुबह 8 बजे से ही मैदान में जुटना शुरू हो गए थे और दोपहर 3 बजे तक तपती धूप में डटे रहे। बुजुर्ग, महिलाएँ और युवा सभी उत्साह और जोश से लबरेज होकर अपने नेताओं का भाषण सुनते रहे।
भीड़ का अनुशासन और धैर्य उल्लेखनीय रहा। भीषण गर्मी और उमस के बावजूद लोग कार्यक्रम स्थल पर टिके रहे, मानो यह केवल राजनीतिक सभा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान और अधिकारों की आवाज़ उठाने का मौका हो।
तेजस्वी प्रसाद यादव का उद्घाटन
कार्यक्रम का उद्घाटन बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री श्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने शहीद जगदेव प्रसाद को नमन करते हुए कहा कि उनकी विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी दशकों पहले थी।
तेजस्वी यादव ने कहा –
“जगदेव बाबू ने जिस समाज के लिए संघर्ष किया, आज वही समाज अपने अधिकारों के लिए जाग चुका है। बिहार की जनता यह समझ चुकी है कि उन्हें कौन न्याय दिला सकता है और कौन सिर्फ नारेबाज़ी करता है। यह रैली साबित करती है कि रोहतास से उठी आवाज़ पूरे बिहार की दिशा बदल सकती है।”
उनके भाषण के दौरान मैदान में उपस्थित लाखों की भीड़ ने तालियों और नारों से स्वागत किया।
मंच पर दिग्गज नेताओं की मौजूदगी
इस रैली में कई प्रमुख नेता मंच पर मौजूद रहे। जिनमें आलोक कुमार मेहता, रेणु कुशवाहा, सुधाकर सिंह, संजय यादव, अनीता चौधरी, अभय कुशवाहा, शिवशंकर सिंह कुशवाहा समेत अनेक जनप्रतिनिधि और विशिष्ट अतिथि शामिल थे। सभी नेताओं ने जगदेव प्रसाद के विचारों को आगे बढ़ाने और समाज के हक़-अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
उपेंद्र कुशवाहा के कार्यक्रम पर भारी पड़ी भीड़
दिलचस्प बात यह रही कि इसी दिन उपेंद्र कुशवाहा ने भी “कुशवाहा एकजुटता” के नाम से एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया था। लेकिन सासाराम की रैली की भीड़ ने साफ कर दिया कि बिहार का कुशवाहा समाज अब किसके साथ है।
रोहतास जिले के कुशवाहा समाज ने इस रैली में शामिल होकर यह साबित कर दिया कि उनका विश्वास तेजस्वी यादव के नेतृत्व में है। सिर्फ एक जिले की भीड़ ने ही उपेंद्र कुशवाहा के पूरे प्रदेशव्यापी कार्यक्रम को फीका कर दिया। यह नजारा बिहार की राजनीति में बड़ा संदेश देने वाला था।
कुशवाहा समाज की ऐतिहासिक भूमिका
रैली का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि इसमें कुशवाहा समाज की ताक़त और उनकी ऐतिहासिक भूमिका साफ़-साफ़ सामने आई।
शिवशंकर सिंह कुशवाहा के नेतृत्व और मेहनत से यह रैली सफल रही। उन्होंने लगातार गाँव-गाँव जाकर लोगों को जगदेव प्रसाद के विचारों से जोड़ने का काम किया।
कुशवाहा समाज हमेशा से समानता और शांति का पक्षधर रहा है। इस समाज ने कभी धार्मिक उन्माद, जातिगत हिंसा या लाठी-डंडे की राजनीति को समर्थन नहीं दिया। इसके विपरीत, शहीद जगदेव प्रसाद और जगदीश मास्टर जैसे महान नेताओं ने अपने प्राणों की आहुति देकर समाज को न्याय और अधिकार की राह दिखाई।
इतिहास गवाह है कि कुशवाहा समाज ने हमेशा क्रांति और बदलाव का साथ दिया है। 1970 के दशक से लेकर आज तक यह समाज शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। आज की रैली ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि कुशवाहा समाज की भूमिका बिहार की राजनीति में निर्णायक रही है और आगे भी रहेगी।
भीड़ का जोश और संदेश
रैली में मौजूद युवाओं का उत्साह देखने लायक था। हाथों में बैनर और झंडे लिए, नारे लगाते हुए वे अपने नेताओं के समर्थन में खड़े थे। बुजुर्गों ने इसे “ऐतिहासिक एकजुटता” बताया, जबकि महिलाओं की भागीदारी ने इसे और भी खास बना दिया।
यह रैली केवल एक समाज की ताक़त का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक संदेश था कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है। समानता, न्याय और भाईचारे की राजनीति ही भविष्य का रास्ता है।
रैली से निकला निष्कर्ष
1. तेजस्वी यादव का कद बढ़ा – इस रैली ने यह साबित कर दिया कि तेजस्वी यादव अब सिर्फ विपक्ष के नेता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति के सबसे बड़े चेहरा हैं।
2. उपेंद्र कुशवाहा को झटका – उनके कार्यक्रम पर सासाराम की भीड़ ने पानी फेर दिया और यह संकेत दिया कि समाज उनके साथ नहीं है।
3. कुशवाहा समाज का निर्णायक रुख – उन्होंने दिखा दिया कि वे हमेशा परिवर्तनकारी राजनीति के साथ खड़े रहेंगे।
4. जगदेव प्रसाद की विरासत जीवित – उनकी जयंती पर हुई इस रैली ने उनके विचारों को पुनर्जीवित किया।