श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के लिए मांगी मदद तो ‘गुरुजी’ ने दी थीं ‘सोने की ये 5 मुद्राएं’ हेमंत पाठक

वो 1950 का दौर था. स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव सालभर दूर थे. हिंदू महासभा छोड़ने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक नए दल का गठन करना चाहते थे. इसके लिए डॉ. मुखर्जी दिल्ली से 1000 किलोमीटर की यात्रा करके नागपुर पहुंचे. वे वहां एक पुराने औपनिवेशिक बंगले पर गए, जिसमें पहले कभी वीर सावरकर रहा करते थे. लेकिन अब तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख वहां उनका इंतज़ार कर रहे थे. डॉ. मुखर्जी ने नए दल की स्थापना के लिए माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ की सहायता मांगी, लेकिन गोलवलकर ने मुखर्जी की मदद करने से मना कर दिया.

‘गुरुजी’ के इनकार के बाद भी मुखर्जी हतोत्साहित नहीं हुए. वे जानते थे कि 1948 के प्रतिबंध से मिली गहरी चोट के बाद RSS में इतने लोग थे, जो ‘राजनीतिक सुरक्षा’ प्राप्त करना चाहते थे. श्यामा प्रसाद इतने आत्मविश्वासी थे कि वे हिंदू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष से मिले और उन्हें हिंदू महासभा को समेटकर अपनी नई पार्टी में शामिल होने के लिए कहा.

समय बीता और 4 महीने बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नए दल की योजना बनाने के लिए एक बैठक बुलाई. यह कदम सरदार पटेल के निधन के तथ्य से भी प्रभावित था. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उस बैठक में आरएसएस के नेता भी मौजूद हों. बैठक में यह सुझाव दिया गया कि ‘गुरुजी’ (यानी गोलवलकर) को इस संगठन को समर्थन देने के लिए मनाया जाए. इसका कारण ये बताया गया कि आरएसएस एक सशक्त स्वयंसेवक संगठन है और उसके पास फलती-फूलती प्रेस है. उसमें कई प्रतिभावान कार्यकर्ता है.

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गोलवलकर ने मुखर्जी को दीं ‘सोने की ये पांच मुद्राएं’

विनय सीतापति अपनी किताब ‘जुगलबंदी’ में लिखते हैं कि राजनीति से दूर रहने की गोलवलकर की आज्ञा से उनके अपने ही सहायकों को परेशानी थी. किसी दूसरे समूह में इस प्रकार की आधारभूत असहमति के कारण फूट पड़ सकती थी, लेकिन गोलवलकर ने एकता के लिए अपने अहम को त्याग दिया. उन्होंने नई पार्टी के गठन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का समर्थन करने का निर्णय लिया. उन्होंने मुखर्जी से वादा किया कि ‘मैं तुम्हे सोने की पांच मुद्राएं दूंगा’. ये ‘मुद्राएं’ कौन थीं, ये जानना बेहद दिलचस्प है. दरअसल, गोलवलकर के आश्वासन के बाद जल्दी ही कुछ आरएसएस नेताओं को नई पार्टी में भेज दिया गया. ‘गुरुजी’ ने मुखर्जी को सोने की जो पांच ‘मुद्राएं’ दीं, उनमें दीनदयाल उपाध्याय, सुंदर सिंह भंडारी, नानाजी देशमुख, बापूसाहेब सोहनी और बलराज मधोक शामिल थे.

गोलवलकर

 

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