निज संवाददाता/पटना : कुशवाहा समाज एक परिश्रमी, विद्वान और ऐतिहासिक रूप से गौरवशाली समुदाय रहा है, जिसने भारत के सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान से हमेशा पहचान बनाई है। परन्तु यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज जब यह समाज अपने हक और सम्मान के लिए एकजुट होकर संघर्ष कर रहा है, तब तथाकथित मुख्यधारा मीडिया उसे वह स्थान नहीं दे रही जिसकी वह वास्तविक रूप से हकदार है।

पिछले कुछ महीनों में पटना जैसे बड़े नगर में कुशवाहा समाज के विभिन्न संगठनों और प्रतिष्ठित नेताओं द्वारा एक के बाद एक ऐतिहासिक आयोजन किए गए, जिनमें समाज की एकता, अधिकारों, शिक्षा, राजनीतिक सहभागिता और सामाजिक उत्थान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। इन आयोजनों में हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए, जो यह दर्शाता है कि समाज जागरूक हो रहा है और बदलाव के लिए तैयार है। लेकिन दुख की बात यह है कि इन आयोजनों को देश की मुख्यधारा मीडिया में ना के बराबर जगह मिली, जो कि एक प्रकार से मीडिया के दोहरे चरित्र को उजागर करता है।

आइए एक नजर डालते हैं उन प्रमुख आयोजनों पर जिन्हें मीडिया ने लगभग नजरअंदाज किया:

1. अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा द्वारा आयोजित कुशवाहा कल्याण परिषद का कार्यक्रम, जिसकी अगुवाई श्री शंकर मेहता ने की — यह कार्यक्रम समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दों पर केंद्रित था।

2. पूर्व मंत्री श्री नागमणि जी द्वारा गांधी मैदान में आयोजित कुशवाहा आक्रोश रैली — जिसमें उन्होंने समाज की राजनीतिक अनदेखी और सरकारी योजनाओं में हिस्सेदारी की कमी को प्रमुखता से उठाया।

3. श्री निशिकांत सिन्हा ,द्वारा बापू सभागार में आयोजित जन आशीर्वाद रैली — इस रैली में समाज के युवाओं, छात्रों और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित और उल्लेखनीय रही।

4. डॉ. मधुप जी और उनके टीम द्वारा डाॅक्टरों और बुद्धिजीवियों की बैठक, जिसमें समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में समाज की भागीदारी पर विस्तृत चर्चा की। इस मीटिंग में एकल नाम से मेडिकल सेवा उपलब्ध कराने के साथ साथ मेडिकल शिक्षा पर विशेष जोर देने की बात सामने आई थी .एकल मेडिकल ब्रांड से ग्रामीण स्तर तक स्वास्थ्य सेवाओं को धरातल पर उपलब्ध कराने का संकल्प लिया गया था..

5. सांसद श्री राजाराम सिंह द्वारा कोयरी-कुर्मी एकता सम्मेलन — जो अटल पथ के पास महेश नगर के मिलन मैरेज हॉल में संपन्न हुआ। यह आयोजन सामाजिक एकजुटता का बेहतरीन उदाहरण था।

6. डॉ. सुरेंद्र प्रसाद द्वारा ए.एन. सिंहा इंस्टिट्यूट में सेमिनार एवं पुस्तक विमोचन समारोह — जिसमें इतिहास, विचारधारा और समाज की दिशा पर विद्वानों ने अपने विचार रखे।

इन सभी आयोजनों में हजारों की संख्या में समाज के लोग उपस्थित थे, लेकिन अफसोस की बात है कि यह खबरें मीडिया की सुर्खियां नहीं बन सकीं। जब अन्य समुदायों के आयोजनों को प्रमुखता दी जाती है, जब छोटी-छोटी बातों को ब्रेकिंग न्यूज बना दिया जाता है, तब कुशवाहा समाज के इतने बड़े कार्यक्रमों की अनदेखी सीधे तौर पर एक साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है।

यह स्थिति समाज के लिए चेतावनी है। अब समय आ गया है कि हम केवल दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय अपना मीडिया प्लेटफॉर्म बनाएं। हमें चाहिए कि हम “कुशवाहा समाज का स्वतंत्र मीडिया चैनल” शुरू करें — एक ऐसा मंच जहाँ हमारे समाज के हर छोटे-बड़े कार्यक्रम को उचित सम्मान और स्थान मिले। हमें खुद अपनी खबरें बनानी होंगी, अपनी कहानियों को दस्तावेज करना होगा, अपने नायकों को सम्मान देना होगा और अपने मुद्दों को व्यापक मंच तक पहुँचाना होगा।

सिर्फ मीडिया नहीं, हमें अपने समाज के युवाओं को भी पत्रकारिता, सोशल मीडिया, फिल्म निर्माण, यूट्यूब, ब्लाॅगिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित करना होगा ताकि वे कुशवाहा समाज के अंदर चल रहे आंदोलनों, उपलब्धियों और चुनौतियों को प्रभावी रूप से सामने ला सकें। हमारे पास टेक्नोलॉजी है, संसाधन हैं, बस एकजुटता की कमी है। वह एकजुटता अब हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि जब तक हमारा समाज स्वयं अपने मंचों को नहीं बनाएगा, तब तक अन्य किसी से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। यह दोहरी मानसिकता सिर्फ मीडिया तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ता के गलियारों तक फैली हुई है। हम तब तक हाशिए पर रहेंगे जब तक खुद अपनी आवाज बुलंद करने का साहस नहीं करेंगे।

हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है — चाहे वह सम्राट अशोक हों, सम्राट कुषाण हों या आधुनिक युग के स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी — हम हमेशा परिवर्तन के अग्रदूत रहे हैं। लेकिन आज हमें फिर से उसी जुनून और ऊर्जा के साथ आगे आने की जरूरत है। यह सिर्फ आंदोलन नहीं है, यह “अस्तित्व की लड़ाई” है।

समाधान क्या है?

1. स्वतंत्र मीडिया चैनल की स्थापना — यूट्यूब, फेसबुक, वेबसाइट और OTT प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए।

2. सामाजिक एकता और गोलबंदी — हर गांव, प्रखंड और जिले में कुशवाहा युवाओं की समितियाँ बनें।

3. डिजिटल प्रशिक्षण केंद्र — पत्रकारिता, वीडियो एडिटिंग, ग्राफिक डिजाइन जैसे क्षेत्रों में।

4. प्रबुद्ध वर्ग का नेटवर्क — डाॅक्टर्स, प्रोफेसर्स, लेखकों और छात्रों को जोड़ा जाए।

5. हर कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग और दस्तावेज़ीकरण — ताकि कोई आयोजन इतिहास में खो न जाए।

अतः अब वक्त है आत्ममंथन का नहीं, आत्मबल दिखाने का। हमें यह तय करना होगा कि हम सिर्फ दूसरों की खबरों का हिस्सा बनकर रहेंगे या खुद अपनी कहानी गढ़ेंगे। आइए, एकजुट हों, और इस संघर्ष को आंदोलन में बदल दें। एक ऐसा आंदोलन जो सिर्फ सम्मान की बात नहीं करेगा, बल्कि समाज के हर कोने में चेतना की लौ जलाएगा।

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